Skip to main content

श्रद्धेय गुरूभ्राता साहब श्री हरीन्द्रानन्द




सदानीरा सरयू नदी के उतरी तट पर अवस्थित है बिहार प्रांत का जिला सीवान। सीवान के कण-कण में देवाधिदेव महेंद्रनाथ महादेव का तेज व्याप्त है। जाने कितने रत्न छिपाये बैठी हैं यह धरा देशरत्न बाबू राजेन्द्र प्रसाद की जन्मभूमि का नाम पाकर गौरवान्वित हुई। और अब यह रत्नगर्भा धरा आत्ममुग्ध एवं आहलादित है अपने ही गर्भ से अवतरित परमात्मा के परम प्रिय शिष्य साहब श्री हरीन्द्रानन्द जी की आध्यात्मिे जागरण यात्रा से । राजेंद्र बाबू ने अपनी सादगी से राजनीतिक बुलंदी की इबारत दर्ज कराई तो साहब श्री हरीन्द्रानन्द जी आडंबर रहित अपने आध्यात्मिक जागरण से शिवत्व की गाथा लिख रहे है। कौन हैं ये जो गृहस्थ जीवन में शिवचर्चा से आध्यात्मिक जागरण की अलख जगा रहंे हैं । ये कौन आया है हमारी दुनिया में जो शिवत्व से हमारे गृहस्थ जीवन को सुवासित कर उसे संवारने की युक्ति चला रहा हैं। ऐसे ही अनगिनत से सवाल मन में कुलांचे मार रहे है। जवाब अत्यंत सरल और सुलभ हैं-- साहब श्री हरीन्द्रानन्द जी।
बिहार के सीवान जिला का एक गांव है अमलोरी । यह गांव सीवान से पांच किलोमीटर की दूरी पर गोपालगंज जाने वाल मुख्य सड़क पर अवस्थित है । यही वह गांव है जहां 1948 के कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी कीसर्दियों वाली सुबह नियति के हाथों परमात्मा ने सदियों की गाथा को लम्हों से लिखवाया और श्री विश्वनाथ सिन्हा तथा माता श्रीमती राधा जी की प्रथम संतानर के रूप में साहब श्री हरीन्द्रानन्द जी का अवतरणहुआ। यह ऐसा अवतरण था कि माता-पिता और गांव जवार ही नहीं बल्कि पूरे देश ने जन्मोत्सव मनाया । दिपावली जो थी उसी तिथि को। मिट्टी का घर , मिट्टी के खिलौने और मिट्टी की काया, पिता श्री विश्वनाथ बाबू की उर्जा और मां राधाजी के आंचल की छांव पाकर ऐसी निखरी की मिट्टी से माधव हो गई। जैसे हृदय में शिव , सांसों में शिवत्व और कंठ में पंचाक्षर बस गया । शिव को गुरू क्या बनाया हरीन्द्रानन्द जी की दुनिया हा बदल गई। जिसे श्मशानों में ढ़ूंढ़ा करते थे वे स्वयं हृदय में  विराजने लों जिन्हें मंदिरों में खोजते रहें वे सांसों में बस गए। जिसे जपना चाहा वह कंठ में ही उतर गया। लोग जिसे चमत्कार कहते हैं, हरीन्द्रानन्द जी उसे महादेव की दया बताते हैं। साहब श्री हरीन्द्रानन्द जी की वैचारिक सादगी से अभिभूत तमाम गुरूभाई -बहनें उन्हें नाम नहीं वरेण्य गुरूभ्राता का संबोधन देना पसंद करते हैं।
साहब श्री हरीन्द्रानन्द जी के पिता श्री विश्वनाथ सिन्हा जी व्याख्याता थें। बाद के दिनों में वे बिहार प्रशासनिक सेवा के लिए चयनित हो गए। कुछ दिनों बाद उनकी सेवा शिक्षा विभाग को सौंप दी गई। पिता के तबादलांे के साथ वर्ष -दर -वर्ष उजड़ना और फिर बसना साहब श्री हरीन्द्रानन्द जी की जीवन शैली का अंग बनता गया। पुत्र के आध्यात्मिक रूझान को देख पिता ने 1972 मेें पलामू जिला के मनातू गा्रामवासी मशहूर जमींदार मौआर जगदीश्वर जीत सिंह की द्वितीय कन्या राजमणि नीलम जी के साथ दांपत्य सूत्र का बंधन संपन्न कराया। दीदी श्री के नाम से सुविख्यात नीलम आनंद जी एक बार साहब श्री हरीन्द्रानन्द जी की जीवन संगिनी क्या बनीं मानांे छाया सदृश्य जीवन का सफर तय करती रहीं। उन्होंने  पति के साधना मार्ग का अवरोध बनने की बजाय सहचर बनना पसंद किया । 5 वर्ष की उम्र में भूत प्रेत और तंत्र मंत्र की बातें , किशोरावस्था में श्मशान साधना , कॉलेज के दिनों में शिव की तलाश । आरा, सहरसा और साहेबगंज के श्मशानों से लेकर नरमुंडों तक में खोज , सिर्फ रहस्यमयी दुनिया की खोज चलती रहीं। 1974 तक ऐसा ही चलता रहा। छद्मवेशधारी  आत्माएॅ शिव रूप में तो कभी साधु रूप में प्रकट होकर शिवत्व के मूल ज्ञान से भटकाकर दूर ले जाने का प्रयास करती रहीं । 1974  का नवंबर यू तो अवसाद लेकर आया था साहब श्री के जीवन में लेकिन जाते-जाते मन को शिवत्व का ज्ञान करा गया। 1975 में मुुजफ्फरपुर के समीप तुर्की स्थित सरकारी आवास में साहब श्री को शिव नाम मंत्र का तब ज्ञान हुआ जब सांसों के साथ नमः शिवाय आत्मा की गहराइयों में उतरता चला गया। कुछ पल के लिए तो जैसे सारी जिंदगी ही ठहर गई। वे चिल्ला उठे ’रे-रे! ठहे त खेजत रहनीं ह’’ यानि वही तो ढ़ुंढ़ रहे थे मिल गया, मिल गया। बेखुदी ऐसी कि मां घर के अंदर से चिल्ला कर पूछती रहीं कि क्या मिल गया, लेकिन होश किसे था जो उतर देता। जब चेतना लौटी तो मां को बाहर से ही चिल्लाकर बताया चाबी मिल गई मां। यह अध्यात्म की वह कुजी थी जो सांसों में ऐसी समाई कि अबतक आत्मा के तार बजते रहतें है। और चमत्कार होते रहतें है।













Comments

Popular posts from this blog

Biography of Sahab Shree Harindranand

At the bank of Saryu river of Bihar there is a district named as Siwan. In Siwan there is a famous temple called Mahendra Nath Mahadev. Sivan is the land of India's first president Rajendra Prasad and this land is also hometown of Lord Shiva's first shivashishya Sahab Sri harindranand ji. Rajendra Prasad had achieved success in his political life while Sahab Sri harindranandjee had made many shivshishya and he was the first shivashishya who tell about how can we make Shiva as guru(teacher ).     In the district of Siwan there is a village Amlori. this village 5 kilometre away from Siwan. His father Sri Vishwanath Sinha was a government officer and mother Shrimati Radha ji was a homemaker. After born of sahab harindranand in 30 October, 1948 whole  country celebrated his  birthday because this  Day was  Diwali. In Hindi